Monday, March 2, 2020

विनती

पंख न काटो पिय मेरे तुम
छूने दो मुझे नभ का छोर,
अंधियारी रैन में मेरी
होने दो स्वप्नों की भोर।

पीत पड़े स्वप्न जो मेरे
रंग दूंगी फिर से मैं हरित,
साथ जो तुम दे दो पिया जी
कर दूंगी मैं उनको जीवित,
पंखों पर स्वप्नों को सजाकर
झूम झूम नाचूँ बन मोर,
पंख न काटो पिय मेरे तुम
छूने दो मुझे नभ का छोर।

हर क्षण अपना करके अर्पित
मैंने निभाये है वर्ष कई,
अब तुम मुझे भी दे दो पिया जी,
क्षण जो उम्मीद जगाए नई,
रंग भरूँ जिनमे सतरंगी
खिल जाए हर स्वप्न का कोर,
पंख न काटो पिय मेरे तुम
छूने दो मुझे नभ का छोर।

-निधि सहगल

छत की मुँडेर

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