Wednesday, February 12, 2020

क्या तुम साथ निभा पाओगे!

जीवन चक्र के घोर थपेड़े,
बिखरा देंगे रूप सुनहरे,
भीड़ में खड़ी जो कभी अकेली,
तुम्हें पुकारूँ , प्रियतम मेरे,
क्या उस क्षण भी इस क्षण भांति,
हाथ थाम कर मेरा प्रियवर,.         
मेरे मनमीत कहलाओगे!              
क्या तुम साथ निभा पाओगे!
                    हो विरोध के बादल छाए,
                    आकर मेरे अस्तित्व से टकरायें,
                    छिन्न भिन्न कर मेरे मन को,
                     अपने समक्ष मुझे झुकायें,
                     क्या उस क्षण भी इस क्षण भांति,
                      ढाल बनकर मेरे प्रियवर,
                      मेरे गौरव कहलाओगे!
                      क्या तुम साथ निभा पाओगे!
मिट जाए जो सुख की लकीरें,
दुख आकर द्वार पर चीखे,
जिस दिशा देखूं, हो विचलित,
रूठ जाए कर्म के लेखे जोखे,
क्या उस क्षण भी इस क्षण भांति,
ईश बनकर,मेरे प्रियवर,
मेरे धीरज कहलाओगे!
क्या तुम साथ निभा पाओगे !

-निधि सहगल


4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-02-2020) को "प्रेम दिवस की बधाई हो" (चर्चा अंक-3611) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    आँचल पाण्डेय

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुंदर शृंगार भाव लिए प्रियतम से सवाल ।
    सुंदर भाव रचना।

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  4. बहुत सुंदर 👌👌👌

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