सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली;
दूर क्षितिज के पार डूबती
सूरज की रक्तिम लाली।
सांझ आरती घर में गूंजे,
तुलसी होती ज्योतिर्मय;
पंछी लौटे दाना लेकर,
आश्रित होते मोदमयी;
चूल्हे की कालिमा झरती
हाथ सजे काजलवाली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली;
व्योम पिछौरी पर है बिखरे,
झिलमिल जुगनू झुंड कई;
इक छोटा सा गोल रोटला
झांके उनके मध्य वहीं ;
रवि रूप को पाश में भरती
श्याम रैन, बनकर व्याली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली;
पंख लगाये स्वर्णिम सपनें,
देते है कुछ आस नई;
नैन पटल में विचरे ऐसे,
रैन बसेरे बसे यही;
शीत पवन में महके बेला,
झींगुर वाणी मतवाली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली
-निधि सहगल
लगा सांझ होने वाली;
दूर क्षितिज के पार डूबती
सूरज की रक्तिम लाली।
सांझ आरती घर में गूंजे,
तुलसी होती ज्योतिर्मय;
पंछी लौटे दाना लेकर,
आश्रित होते मोदमयी;
चूल्हे की कालिमा झरती
हाथ सजे काजलवाली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली;
व्योम पिछौरी पर है बिखरे,
झिलमिल जुगनू झुंड कई;
इक छोटा सा गोल रोटला
झांके उनके मध्य वहीं ;
रवि रूप को पाश में भरती
श्याम रैन, बनकर व्याली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली;
पंख लगाये स्वर्णिम सपनें,
देते है कुछ आस नई;
नैन पटल में विचरे ऐसे,
रैन बसेरे बसे यही;
शीत पवन में महके बेला,
झींगुर वाणी मतवाली;
सहसा ही तंद्रा जब टूटी,
लगा सांझ होने वाली
-निधि सहगल