अंतस के सागर में डूबे ध्यान मग्न में लेटे केशव,
नैनों के नीले पटल से हर लेते कष्टों का भूधर,
विचलित ह्रदय की चंचलता को
देते अद्वैत का ज्ञान जो अगोचर,
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
दिव्य ज्योति जो बसती तन में,
दिखे नहीं पर रमती मन में,
सत्य जो चमके है ललाट पर,
उस ज्योति से ही प्राप्त कर,
जीवन पथ बनता है शिवकर
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
तू भी अमृत, मैं भी अमृत,
जीव का हर कण कण है अमृत,
केशव तुझमें, केशव मुझमें,
'अहं ब्रह्मास्मि ' भाव ही शुभकर
मन के पट खोल जो देखो,
मिलेंगे स्वयं भू के ही अणु कण,
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
-निधि सहगल
©feelingsbywords
नैनों के नीले पटल से हर लेते कष्टों का भूधर,
विचलित ह्रदय की चंचलता को
देते अद्वैत का ज्ञान जो अगोचर,
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
दिव्य ज्योति जो बसती तन में,
दिखे नहीं पर रमती मन में,
सत्य जो चमके है ललाट पर,
उस ज्योति से ही प्राप्त कर,
जीवन पथ बनता है शिवकर
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
तू भी अमृत, मैं भी अमृत,
जीव का हर कण कण है अमृत,
केशव तुझमें, केशव मुझमें,
'अहं ब्रह्मास्मि ' भाव ही शुभकर
मन के पट खोल जो देखो,
मिलेंगे स्वयं भू के ही अणु कण,
रे मानव !किंचित तो झांको,
हरि पुकारे,हर क्षण भीतर।
-निधि सहगल
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