Thursday, January 30, 2020

कहमुक़री



शीतल जिसका आलिंगन है,
स्पर्श मात्र मीठी सिरहन है,
अंग संग रह बढ़ाता है आयु
ऐ सखि साजन?ना सखि वायु!

सारी सारी रात जगाए,
कानों में सुर अपना सुनाए,
तन पर मेरे बनाए जो अक्षर
ऐ सखि साजन?ना सखि मच्छर!

-निधि सहगल

Saturday, January 4, 2020

हम एक हैं

दीवारें जो खड़ी हैं, गिरा दो अभी,
वहम की लकीरें मिटा दो सभी,

है बहता सभी की रगों में जो लहू,
न जाने वो जाति, न मज़हब से रूबरू,
मोहब्बत की फ़िज़ा बहा दो अभी,
हम रब की रूहें हैं, बता दो सभी।

नहीं इल्म हमको नफरतों का कोई,
न ग़ैरत ख़त्म है,न इंसानियत है खोई,
हर उठती चिंगारी को बुझा दो अभी,
'',हम एक है" की आवाज लगा दो सभी।

दीवारें जो खड़ी हैं, गिरा दो अभी,
वहम की लकीरें मिटा दो सभी।।

निधि सहगल

छत की मुँडेर

मेरी छत की मुंडेर, चिड़ियों की वो टेर, इन वातानुकूलित डिब्बों में खो गई, बचपन के क़िस्सों संग अकेली ही सो गई, होली के बिखरे रंग फीके हैं पड़ गए...