Saturday, January 4, 2020

हम एक हैं

दीवारें जो खड़ी हैं, गिरा दो अभी,
वहम की लकीरें मिटा दो सभी,

है बहता सभी की रगों में जो लहू,
न जाने वो जाति, न मज़हब से रूबरू,
मोहब्बत की फ़िज़ा बहा दो अभी,
हम रब की रूहें हैं, बता दो सभी।

नहीं इल्म हमको नफरतों का कोई,
न ग़ैरत ख़त्म है,न इंसानियत है खोई,
हर उठती चिंगारी को बुझा दो अभी,
'',हम एक है" की आवाज लगा दो सभी।

दीवारें जो खड़ी हैं, गिरा दो अभी,
वहम की लकीरें मिटा दो सभी।।

निधि सहगल

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत अच्छी और प्रभावी रचना
    बधाई

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  3. बहुत सुंदर भावों वाला सुंदर सृजन।

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