शीतल जिसका आलिंगन है,
स्पर्श मात्र मीठी सिरहन है,
अंग संग रह बढ़ाता है आयु
ऐ सखि साजन?ना सखि वायु!
सारी सारी रात जगाए,
कानों में सुर अपना सुनाए,
तन पर मेरे बनाए जो अक्षर
ऐ सखि साजन?ना सखि मच्छर!
-निधि सहगल
मेरी छत की मुंडेर, चिड़ियों की वो टेर, इन वातानुकूलित डिब्बों में खो गई, बचपन के क़िस्सों संग अकेली ही सो गई, होली के बिखरे रंग फीके हैं पड़ गए...
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