वो क्षणिका ,वो छंद,
वो प्रेरक प्रसंग,
वो दोहों की लड़ियाँ,
वो काव्य की कड़ियाँ,
वो जोश से भरी हुंकारों की ललकारें
जो स्याही में सज कर देतीं थी पुकारें
वो दिनकर का कुरुक्षेत्र,
महादेवी की यामा,
वो मैथिली की यशोधरा,
बच्चन की मधुशाला,
वो जो देश के लहु में बसता है,
ज्ञान का सागर,
वो जो हिन्द की पहचान है,
हिन्दी की गागर,
वो जो आत्म को परमात्म की शक्ति से मिलाता,
वो जो बंजर ह्रदय में प्रेम रस जगाता,
वो जो सरहद के रक्षक का आत्म बल है बनता,
वो जो कहकहों व ठहाकों की चादर है बुनता,
वो असीम शक्तिशाली कवि और काव्य कहाँ है?
क्यों सुप्त है ?कहाँ उसकी कलम और कागज़ कहाँ है?
जगाओ उस कवि को कि रैन न हो जाये,
इस महान काव्य के सुर कहीं न खो जायें,
जागो कवि, हे राष्ट्र के दिवाकर,
फैलाओ काव्य का परचम सर्वश्रेष्ठ बनकर।
-निधि सहगल
लाजवाब सुंदर आह्वान रचनाकारों को ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
मैं आपके विचारों से सहमत हूँ।
ReplyDeleteआजकल आधुनिक कविता के नाम पर सुलेखों को छोटी छोटी पंक्तियों में तोड़ पेश कर देते हैं।
आधुनिक कविता में केवल तुकबन्दी नहीं होती मगर एक तारतम्य , एक लय, अलंकारों का उचित प्रयोग, लय सब कुछ होता है। ये बात बहुत कम ही लोग जानते हैं।
आपकी बहुत ही उत्तम रचना है।
नये ब्लॉगर से मिलें अश्विनी: परिचय (न्यू ब्लोगर)
सुन्दर कविता
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