छिलती लकीरों से बहती रवानी हो तुम,
दिख कर भी अनदेखी कहानी हो तुम,
ठिठुरते हाथों की मुस्कुराती शाम से लेकर,
सुबह की तपती जवानी हो तुम,
कुरबानीयत के ईनाम को तरसती,
प्यार भरी अल्हड़ दीवानी हो तुम,
ज़ुबां से बरसते कहर को पीती,
आँखों में दबा पानी हो तुम,
बनाती हो अपने अंदर ही एक दुनिया,
दुनिया के लिए बेगानी हो तुम,
तुम, तुम हो ही कहाँ इस बेदर्द दुनिया में,
तकती निग़ाहों की बेईमानी हो तुम।
-निधि सहगल
दिख कर भी अनदेखी कहानी हो तुम,
ठिठुरते हाथों की मुस्कुराती शाम से लेकर,
सुबह की तपती जवानी हो तुम,
कुरबानीयत के ईनाम को तरसती,
प्यार भरी अल्हड़ दीवानी हो तुम,
ज़ुबां से बरसते कहर को पीती,
आँखों में दबा पानी हो तुम,
बनाती हो अपने अंदर ही एक दुनिया,
दुनिया के लिए बेगानी हो तुम,
तुम, तुम हो ही कहाँ इस बेदर्द दुनिया में,
तकती निग़ाहों की बेईमानी हो तुम।
-निधि सहगल