अतीत का सिमटा स्मृति खग जब,
एक सूक्ष्म स्पर्श जो पाता,
अंगड़ाई ले ह्रदय व्योम में,
स्थूल रुप में पंख फैलाता।
घुमड़ घुमड़ कर मानस तल पर,
तीव्र उड़ान का आभास दिए,
कुंठित करता, कभी हँसता,
कभी भावों के चंचल मेघों में,
विविध रंगों सा घुलता जाता।
ले आता पलछिन के मेघ,
जो बीते दिवसों की नेह बरसाते,
झम-झम कर भिगोते मन को,
तन का रोम रोम सिहराता,
भरते जीवन के रिक्त कूपों को,
स्मृतियों का बवंडर छा जाता।
क्षणों के मद में डूबा स्मृति खग,
ज्यों ही यथार्थ से आ टकराता,
टूटता अतीत का मिथ्या दर्पण ,
वर्तमान प्रकाश का सूर्य चमकाता,
गिरता खग मानस पट पर,कराह कर,
पंख समेट फिर चिर में विस्मृत हो जाता।
-निधि सहगल
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