Monday, November 25, 2019

छिलती लकीरों से बहती रवानी हो तुम,
दिख कर भी अनदेखी कहानी हो तुम,

ठिठुरते हाथों की मुस्कुराती शाम से लेकर,
सुबह की तपती जवानी हो तुम,

कुरबानीयत के ईनाम को तरसती,
प्यार भरी अल्हड़ दीवानी हो तुम,

ज़ुबां से बरसते कहर को पीती,
आँखों में दबा पानी हो तुम,

बनाती हो अपने अंदर ही एक दुनिया,
दुनिया के लिए बेगानी हो तुम,

तुम, तुम हो ही कहाँ इस बेदर्द दुनिया में,
तकती निग़ाहों की बेईमानी हो तुम।

-निधि सहगल

2 comments:

छत की मुँडेर

मेरी छत की मुंडेर, चिड़ियों की वो टेर, इन वातानुकूलित डिब्बों में खो गई, बचपन के क़िस्सों संग अकेली ही सो गई, होली के बिखरे रंग फीके हैं पड़ गए...