Friday, November 15, 2019

रचना


किताब में दबी उँगलियों में जब थिरकन हुई,
तो शब्द उलझकर लिपट गए,
नसों में तैरते हुए, हृदय के रंगमंच पर जा
करने लगे नृत्य,
भावनाओं का वाद्य वृंद भी देने लगा ताल,
मस्तिष्क की कोशिकाओं ने तालियों की गड़गड़ाहट कर दी स्वीकृति,
यही है वह रचना जो सुप्त थी मन सागर के धरातल में,
कर रही थी प्रतीक्षा, समय की करवट बदलने का,
आज अपने प्रदर्शन पर इतरा,
स्याही के रंग में निखर गई है पृष्ठ की धरा पर,
प्राप्त हो गई है अमृत्व को सदा के लिए।

-निधि सहगल

4 comments:

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏

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  2. हर शब्‍द में गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन ।

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