*अनवसिता छंद*
111 122,211 22
1)प्रियतम रूठे, बादल रोया,
जल नयनों का, रात न सोया,
पलछिन ढूंढें, ओझल तारे,
दिवस बिताये, बाट निहारे।
2)पग पर छाले, पंथ कटीला,
इट उत डोले, प्रेम हठीला,
मनस नवाऊँ, साजन आगे,
विरह सुनाऊँ, अस्मित त्यागे।
3)मन दुख जानो,व्याकुल हूँ मैं,
अब हठ छोड़ो, आतुर हूँ मैं,
हिय लग जाऊँ, साजन तोहे,
मधुर पुकारें, प्रीतम मोहे।
-निधि सहगल'विदिता'
111 122,211 22
1)प्रियतम रूठे, बादल रोया,
जल नयनों का, रात न सोया,
पलछिन ढूंढें, ओझल तारे,
दिवस बिताये, बाट निहारे।
2)पग पर छाले, पंथ कटीला,
इट उत डोले, प्रेम हठीला,
मनस नवाऊँ, साजन आगे,
विरह सुनाऊँ, अस्मित त्यागे।
3)मन दुख जानो,व्याकुल हूँ मैं,
अब हठ छोड़ो, आतुर हूँ मैं,
हिय लग जाऊँ, साजन तोहे,
मधुर पुकारें, प्रीतम मोहे।
-निधि सहगल'विदिता'
वाह निधि जी बेहद.शानदार मनभावन सृजन।
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