टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
इन्द्रपर्णी वर्णों से उकेरूँ
कोरे पत्रों पर जीविता,
प्रणय गीत के रंग सजाकर
प्रेम सुधा रस बरसाऊं
विरह वेदना स्वर से फिर मैं
प्रेम अग्न विषाद बढ़ाऊ
शौर्य तेज की लौ जब चमके,
बनती शब्दों की सविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
करुणा का जब भाव बहे तो
मीरा के पद मैं छेड़ूँ
नयन नीर की गलियाँ फिर मैं
हास की स्वर्णा से जोडूं
वर्णो की महारास रचाकर
मधुरमयी गाऊँ निविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
बने प्रेरणा जीवन की जो
ऐसे बीजांकुर बोऊँ
गौरवमयी संगीत ताल पर
वर्ण के नर्तन में खोऊँ
बांधू नूपुर स्याह कलम को
दिखलाऊँ कविमय दिविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
-निधि सहगल 'विदिता'
बना लेखनी वो कविता
इन्द्रपर्णी वर्णों से उकेरूँ
कोरे पत्रों पर जीविता,
प्रणय गीत के रंग सजाकर
प्रेम सुधा रस बरसाऊं
विरह वेदना स्वर से फिर मैं
प्रेम अग्न विषाद बढ़ाऊ
शौर्य तेज की लौ जब चमके,
बनती शब्दों की सविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
करुणा का जब भाव बहे तो
मीरा के पद मैं छेड़ूँ
नयन नीर की गलियाँ फिर मैं
हास की स्वर्णा से जोडूं
वर्णो की महारास रचाकर
मधुरमयी गाऊँ निविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
बने प्रेरणा जीवन की जो
ऐसे बीजांकुर बोऊँ
गौरवमयी संगीत ताल पर
वर्ण के नर्तन में खोऊँ
बांधू नूपुर स्याह कलम को
दिखलाऊँ कविमय दिविता
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं
बना लेखनी वो कविता
-निधि सहगल 'विदिता'
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